Monday, March 14, 2011
{ POEM } है दिल में ख़वाईश की तुझसे इक मुलाक़ात तो हो,
है दिल में ख़वाईश की तुझसे इक मुलाक़ात तो हो,
मुलाक़ात ना हो तो फिर मिलने की कुछ बात तो करो,
मोती की तरह समेट लिया है जिन्हे दिल-ए-सागर मे,
ख़वाब सज़ा के, उन ख्वाबों को रुस्वा ना करो…
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आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम
~*~वो बेटी अब मे कहा से लाउ.........
A PRAYER FOR OUR TIMES !...
Short Order by Charles Bukowski
In The Secular Night by Margaret Atwood
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